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मी॒ळ्हुष्म॑तीव पृथि॒वी परा॑हता॒ मद॑न्त्येत्य॒स्मदा। ऋक्षो॒ न वो॑ मरुतः॒ शिमी॑वाँ॒ अमो॑ दु॒ध्रो गौरि॑व भीम॒युः ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mīḻhuṣmatīva pṛthivī parāhatā madanty ety asmad ā | ṛkṣo na vo marutaḥ śimīvām̐ amo dudhro gaur iva bhīmayuḥ ||

पद पाठ

मी॒ळ्हुष्म॑तीऽइव। पृ॒थि॒वी। परा॑ऽहता। मद॑न्ती। ए॒ति॒। अ॒स्मत्। आ। ऋक्षः॑। न। वः॒। म॒रु॒तः॒। शिमी॑ऽवान्। अमः॑। दु॒ध्रः। गौःऽइ॑व। भी॒म॒ऽयुः ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:56» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) मनुष्यो ! जैसे (वः) आप लोगों को (पृथिवी) भूमि (मीळ्हुष्मतीव) वीर्य्य का देनेवाला सुन्दर स्वामी जिसका उसके समान (अस्मत्) हम लोगों से (पराहता) दूर को प्राप्त (मदन्ती) प्रसन्न होती हुई वर्त्तमान है, उसको (शिमीवान्) अच्छे कर्म्मोंवाला (ऋक्षः) पशुविशेष के (न) समान (आ, एति) प्राप्त होता तथा (गौरिव) सूर्य्य के सदृश (भीमयुः) भयङ्कर युद्ध करनेवाले को प्राप्त होनेवाला (दुध्रः) दुःख से धारण करने योग्य पुरुष (अमः) गृह को प्राप्त होता है, वैसे आप लोग भी आचरण करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो प्रयत्न करते हुए कर्म्मों को करते हैं, वे सदा सुखी होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! यथाः वः पृथिवी मीळ्हुष्मतीवास्मत् पराहता मदन्ती वर्त्तते तां शिमीवानृक्षो नैति गौरिव भीमयुर्दुध्रोऽम एति तथा यूयमप्याचरत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मीळ्हुष्मतीव) मीढुः सेक्ता वीर्यप्रदः प्रशस्तः पतिर्विद्यते यस्यास्तत् (पृथिवी) भूमिः (पराहता) दूरं प्राप्ता (मदन्ती) हर्षन्ती (एति) प्राप्नोति (अस्मत्) (आ) (ऋक्षः) पशुविशेषः (न) इव (वः) युष्मान् (मरुतः) मनुष्याः (शिमीवान्) प्रशस्तकर्मवान् (अमः) गृहम् (दुध्रः) दुःखेन धर्त्तुं योग्यः (गौरिव) आदित्य इव (भीमयुः) यो भीमं भयङ्करं योद्धारं याति सः ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये यतमानाः कर्माणि कुर्वन्ति ते सदा सुखिनो भवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे प्रयत्नवादी असून कर्म करत असतात ते सदैव सुखी होतात. ॥ ३ ॥